उत्तराखण्डधर्म/संस्कृतिपौड़ी

सुण दीदी सुण भुली, मैं त अपण संस्कृति बचौंण चली: जिलाधिकारी

👉 बैकुंठ चतुर्दशी मेले में आयोजित हुई पहाड़ी परिधान प्रतियोगिता

👉 जिलाधिकारी ने पहाड़ी परिधान पहनकर दिया परंपरा और संस्कृति से जुड़ाव का प्रेरक संदेश

श्रीनगर। बैकुंठ चतुदर्शी मेले में आयोजित “मि उत्तराखंडी छौं” कार्यक्रम में जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया ने प्रतिभाग कर अपनी संस्कृति के प्रति सम्मान का उदाहरण प्रस्तुत किया। इस अवसर पर उन्होंने उपस्थित लोगों से आह्वान किया कि विवाह, पर्व तथा विशेष अवसरों पर अपनी पारंपरिक गढ़वाली, कुमाऊंनी या पहाड़ी वेशभूषा अवश्य धारण करें। क्योंकि यही हमारी संस्कृति की पहचान और एकता का प्रतीक है।

गोला बाजार स्थित कार्यक्रम स्थल में जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया, महापौर आरती भंडारी, उपजिलाधिकारी नूपुर वर्मा, तहसीलदार दीपक भंडारी सहित सभी पार्षदों, स्थानीय महिलाओं, युवाओं और विद्यार्थियों ने भी पारंपरिक वेशभूषा में उत्साहपूर्ण भाग लेकर अपनी संस्कृति की अनोखी छटा बिखेरकर एकता, लोकसंस्कृति और पहाड़ी पहचान के संरक्षण का संदेश दिया। जिससे पूरा परिसर लोकगीतों, रंग बिरंगे परिधानों और उल्लास से सराबोर रहा।

कार्यक्रम के तहत “स्वाणि नौनी, स्वाणु नौनु, द्वि झणां” प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें प्रतिभागियों ने पारंपरिक परिधान और लोक संस्कृति की सुंदर झलक प्रस्तुत की। जिलाधिकारी ने स्वयं भी पारंपरिक पहाड़ी परिधान धारण कर प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन किया। जिससे पूरा कार्यक्रम स्थल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए महापौर आरती भंडारी ने कहा कि हमारी पारंपरिक वेशभूषा हमारी पहचान व हमारे पूर्वजों की विरासत है। इसे पहनना सिर्फ एक परिधान धारण करना नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और अपनी जड़ों को सम्मान देना है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन हमारे लोकसंस्कृति और पारंपरिक पहनावे के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जिलाधिकारी ने गढ़वाली में कहा कि “सुण दीदी सुण भुली, मैं त अपण संस्कृति बचौंण चली।” उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम केवल गढ़वाली परिधान का नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने की एक मुहिम है। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि पर्वों, शादियों और विशेष अवसरों पर पारंपरिक गढ़वाली, कुमाऊंनी या पहाड़ी वेशभूषा अवश्य धारण करें, क्योंकि यही हमारी पहचान और एकता का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि मेलों का असली उद्देश्य उत्साह, सहभागिता और सांस्कृतिक जुड़ाव है। हमें केवल वेशभूषा ही नहीं, बल्कि अपनी पहाड़ी रसोई, लोकभाषा, लोकनृत्य और लोकगायन से भी जुड़ना चाहिए। जिलाधिकारी द्वारा सभी प्रतिभागियों की सृजनशीलता और सांस्कृतिक समर्पण की सराहना की गई।

प्रतियोगिता परिणामों में स्वाणु नौनु (पुरुष वर्ग) में अभय, स्वाणि नौनी (महिला वर्ग) में कु. सोनाली, द्वि झणां (युगल वर्ग) में रचित गर्ग एवं मारिषा पंवार, स्वाणि पार्षद वर्ग में कु. रश्मि, स्वाणु पार्षद वर्ग में शुभम प्रभाकर तथा स्वाणु निगम कर्मचारी वर्ग में संजय राणा को विजेता घोषित किया गया। कार्यक्रम में जिलाधिकारी ने निर्णायकों अंबिका रावत, शेखर काला, सुधांशु को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

कार्यक्रम का संचालन कमलेश जोशी तथा सरिता उनियाल ने किया। इस अवसर पर सहायक नगर आयुक्त गायत्री बिष्ट सहित नगर निगम के सभी पार्षद, अधिकारी, कर्मचारी तथा भारी संख्या में स्थानीय लोग उपस्थित रहे।

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चन्द्रपाल सिंह चन्द

संपादक - देवभूमि दर्पण
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